ढल गया आफताब ऐ साकी!
ला पिला दे शराब ऐ साकी!
या सुराही लगा मेरे मूंह से
या उलट दे नकाब ऐ साकी!
मैकदा छोड़ कर कहाँ जाऊं
है ज़माना ख़राब ऐ साकी!
जाम भर दे गुनाहगारों के
ये भी है इक सवाब ऐ साकी!
आज पीने दे और पीने दे
कल करेंगे हिसाब ऐ साकी!
--- सुदर्शन फ़ाकिर
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